Sunday, July 26, 2015

सुबह की मस्ती !

सुन्दर सा चेहरा सवेरे सवेरे
जुल्फें हैं जैसे कि बादल घनेरे
शरमा के मुँह को कहीं भी छुपा ले
लगा ही दिया फूल बालों में तेरे !

- सुरेन्द्र कुमार -
रुड़की 1960















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