Saturday, July 25, 2015

तेरे बिना !

गर्म लू में खड़ा मैं ठिठुरता रहा
रात भर मैं अंधेरे से लड़ता रहा
हर खुला रास्ता मुझको दूभर लगा
जब भी अमृत पिया मैं तो मरता रहा।

रात आई गई किस तरह हो गई
तू कहां मैं कहां ये समझता रहा
कब मिलेगी ये मुझको भी मालूम नहीं
बस सितारों को गिन गिन तड़पता रहा।

मेरे हाथ में हाथ  लेकर निकलना
गिरने न दूंगा, ज़रा तो सँभलना
वो मीठी सी आवाज़ मुझको बुलाए
खयालों में तेरे ये कैसा है सपना।

ख़ुद को ख़ुद ही से गले से लगाना
कितना समझकर भी मैंने न जाना
ये थोड़ी सी अनबन, ये थोड़ी सी झिड़कन,
इन्हें ढूंढता हूं, तू अबके न जाना।

12-07-2015    सुरेन्द्र कुमार





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